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कमे॒तं त्वं यु॑वते कुमा॒रं पेषी॑ बिभर्षि॒ महि॑षी जजान। पू॒र्वार्हि गर्भः॑ श॒रदो॑ व॒वर्धाप॑श्यं जा॒तं यदसू॑त मा॒ता ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kam etaṁ tvaṁ yuvate kumāram peṣī bibharṣi mahiṣī jajāna | pūrvīr hi garbhaḥ śarado vavardhāpaśyaṁ jātaṁ yad asūta mātā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कम्। ए॒तम्। त्वम्। यु॒व॒ते॒। कु॒मा॒रम्। पेषी॑। बि॒भ॒र्षि॒। महि॑षी। ज॒जा॒न॒। पू॒र्वीः। हि। गर्भः॑। श॒रदः॑। व॒वर्ध॑। अप॑श्यम्। जा॒तम्। यत्। असू॑त। मा॒ता ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:2» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (युवते) ब्रह्मचर्य्य से पढ़ी विद्या जिसने ऐसी पूर्ण अवस्थावाली (पेषी) पेष्याकार अर्थात् डिब्बी के आकार करि गर्भाशय में वीर्य्य को स्थित करनेवाली (महिषी) महान् रूप, बल और उत्तम स्वभाव आदि के योग से आदर करने योग्य (त्वम्) तू (कम्) किस (एतम्) किया है ब्रह्मचर्य्य जिसने ऐसे इस (कुमारम्) बालक का (बिभर्षि) पालन करती है और (माता) माता (यत्) जिसको (असूत) उत्पन्न करती तथा (जातम्) उत्पन्न हुए को मैं (अपश्यम्) देखता हूँ वह (गर्भः) गर्भाशय में प्राप्त (पूर्वीः) प्राचीन (शरदः) शरद् ऋतुओं तक निरन्तर (हि) जिससे (ववर्ध) बढ़ता है, उससे (जजान) उत्पन्न होता है ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे कन्याओ ! तुम बाल्यावास्था में सोलह वर्ष के प्रथम और पच्चीस वर्ष के प्रथम कुमारजनो ! विवाह को न करो। जो इस प्रकार से ब्रह्मचर्य्य के करने के अनन्तर विवाह को करें उनके सन्तान उत्तम रूप और गुणों से युक्त बहुत कालपर्य्यन्त जीवनेवाले और शिष्ट जनों से उत्तम प्रकार मान पानेवाले होते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे युवते पेषी महिषी ! त्वं कमेतं कुमारं बिभर्षि माता यद्यमसूत जातमहमपश्यं स गर्भः पूर्वीः शरदो हि ववर्धातो जजान ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कम्) (एतम्) कृतब्रह्मचर्य्यम् (त्वम्) (युवते) ब्रह्मचर्य्येणाधीतविद्ये पूर्णयुवावस्थे (कुमारम्) बालकम् (पेषी) पेष्याकारं गर्भाशयस्थं वीर्यं कृतवती (बिभर्षि) (महिषी) महारूपबलशीलादियोगेन पूजनीया (जजान) जायते (पूर्वीः) प्राचीनाः (हि) यतः (गर्भः) गर्भाशयं प्राप्तः (शरदः) शरदृतून् (ववर्ध) वर्धते (अपश्यम्) पश्यामि (जातम्) उत्पन्नम् (यत्) यम् (असूत) सूते (माता) जननी ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे कन्या ! यूयं बाल्यावस्थायामाशेषषोडशाद् वर्षात् प्रागापञ्चविंशाद् वर्षाच्च कुमारा विवाहं मा कुरुत। य एवं ब्रह्मचर्यानन्तरं विवाहं कुर्युस्तेषामपत्यानि रूपगुणान्वितानि चिरञ्जीवीनि शिष्टसम्मतानि जायन्ते ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे युवतींनो तुम्ही सोळा वर्षांपूर्वी व हे युवकांनो तुम्ही पंचवीस वर्षांपूर्वी विवाह करू नका. या प्रकारे ब्रह्मचर्य पाळून त्यानंतर विवाह केल्यास रूपगुणसंपन्न, दीर्घजीवी, सभ्य व उत्तम प्रतिष्ठा प्राप्त करणारी अपत्ये जन्मतात. ॥ २ ॥